VAT PURNIMA केअवसर परपूरे भारतवर्ष में महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है और उन्हें सती सावित्री जैसे व्रत कर कर पति की सुरक्षा के लिए लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है VAT PURNIMA व्रत करती है और वेट वृक्ष को वंदना कर उन्हें रक्षा सूत्र भी बनती है और पूरे भारतवर्ष मेंइस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है उपवास करके विधि विधानपूजा अर्चना कर कर मनाया जाता है.
हर वर्ष जस्ट पूर्णिमा के अवसर पर इस VAT PURNIMA पर सारी महिलाएं सावित्री वातक करती है जिससे वह अपने पति के दीर्घ अवश्य के लिए प्रार्थना करते हैं और बट वृक्ष की पूजा करती हैहै प्रथम हजारों सालों से पूरे भारतवर्ष में चल रही है और उपवास करने के प्रथमभी सारेराज्यों में प्रचलित है इसमेंविवाहित महिला सहित कुंवारी लड़कियां भी इसमें व्रत रखती है कई सारे राज्यों में और अपने होने वाले पति के लिए या फिर अपने पति के लिए प्रार्थना करती है और अगले 7 जन्मों तक ऐसा ही वह हमें मिले इस तरह की प्रार्थना भी करती है.
हर अलग-अलग धर्म में पंथ में VAT PURNIMA के इस जस्ट पूर्णिमा के कई सारे फायदे औरकहानी हमें पता चलती है और इससे लोगों को काफी मोटिवेशनल पर मिलता है उपवास करने के लिए कुशल कम करने के लिए दान करने के लिए धर्म का पालन करने के लिए यही सनातन धर्म है और इसी के कारण है काफी लोग पूजा अर्चना में अपना समय व्यतीत करते हैं और पुण्य अर्पण करने का अवसरपाते हैं.
इस दिन के अवसर पर महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त पर उठकर सारे विधि करके स्नान कर कर पूजा अर्चना के लिए बट वृक्ष के समीप चाहते हैं उनकीकई सारे संस्थासंसाधनों से पूजा अर्चना करती है भोग रखती है और सफेद धागे सेइस वट वृक्ष की परिक्रमा करते हैं और वेट ब्रश की पूजा करते हुए अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करते हैं और इस पूरे दिन में वह व्रत रखती हैनिहार होकर सारे दिन तक पूजा अर्चना में लगी होती है और भगवान की तपस्या में लीन हो जाती है.
जगतपूज्ये जगन्मातः सावित्रि पतिदैवते पत्या सहवियोगं मे वतस्थे कुरु ते नमः॥
पूरे भारतवर्ष में कई सारे पेड़ काफी भुजानिया हैं और इसमें शब्द भी काफी पूजनीय पेड़ों में से एक होता है महामुनीमनु के अनुसार vat में ब्रह्मा विष्णु महेश इन दोनों के अवतार पाए जाते हैं और इसी के कारण VAT PURNIMA के दिन इस वक्त को हम पूछते हैं यह भारत की संस्कृति है जो हजारों सालों से चलती आए हुए हैं.
- मम वैधव्यादि-सकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं
सत्यवत्सावित्रीप्रीत्यर्थं च वटसावित्रीव्रतमहं करिष्ये ।’
- अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।
- वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः ।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ॥
- ऊँ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:।
- नमस्ते सर्वगेवानां वरदासि हरे: प्रिया।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां या सा मे भूयात्वदर्चनात्।।
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